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देश की राजनीति में रामजी सत्ता प्राप्ति का केंद्र बिंदू

देश की राजनीति में रामजी सत्ता प्राप्ति का केंद्र बिंदू

लेखक
तपन चक्रवर्ती
संपादक, छत्तीसगढ़ प्राइड
मासिक पत्रिका

“रोम-रोम में बसने वाले राम, जगत के स्वामी, अंतर्यामी, तुझसे मैं क्या मांगू” । भक्ति गीत में “राम” भारतीय-संस्कृति के जननायक एवं तारणहार के अलावा पथप्रदर्शक भी है। मुनिवर वाल्मिकी के कालजयी रचना “रामायण” के मुख्य किरदार “राम” है। रामायण के जरिये मानव जाति को जीवन जीने का मापदंड और मार्गदर्शन मिलता है। रामायण का दुसरा मुख्य पात्र महारानी “कैकेई” के स्त्रीहट के कारण, राम को वनवास और स्वयं के पुत्र के लिए सत्ता की घिनौनी साजिश में राजा दशरथ को भी प्राण त्यागने पड़े। मुनिवर ने राजा दशरथ के जेष्ठ पुत्र “राम” को सत्ता का केंद्र बताते हुए, अतिमहत्वाकांक्षी मानव जाति को सत्ता प्राप्ति का अभिलाषा बताया गया है।

मुनिवर ने अपनी रचना “रामायण” में अयोध्या नगरी को “राम – जन्मस्थली” बताये जाने के कारण देशवासीयों को राम के प्रति अट्टू श्रद्धा एवं आस्था का केंद्र बना । परिणाम स्वरूप अयोध्या नगरी में जगह-जगह पर धार्मिक संस्थायें बनाये गये । देश की जनता प्राचीन काल से मासूम और सीधे-साधे स्वभाव होने के कारण सैकड़ो सालों तक गुलामी का दंश झेला है। क्रुर मुगल बादशाह बाबर देश पर आक्रमण करते हुए दिल्ली की सन्तनत पर कब्जा किये । क्रूर मुगल बादशाह “बाबर” के आदेश पर 1528 में सेनापति मी- बाकी द्वारा अयोध्या नगरी में निर्मित “राम मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद का – निर्माण कराया गया। जिसे “बाबरी मस्जिद” के नाम से इतिहास के पन्नों में दर्ज है। धार्मिक भावनाओं को पैरों तले रौदना, तानाशाह शासकों का विशेष गुण रहने के कारण हमेशा सत्ता हाथों से फिसलती रही। यहीं से शुरू हुई “रामजन्म भूमि” की संघर्ष यात्रायें । इस संघर्षमय यात्रा की शुरूवात “राम जन्म भूमि सन् 1853 मे दो वर्गो के बिच हिंसा के चलते हुई हजारों आस्थावान भक्तों की जाने चली गई। किंतु मुगल सल्तनत के चलते शंहशाह अकबर द्वारा बिरबल के कहने पर राम जन्म- – भूमि के अन्य स्थान पर छोटा सा अस्थाई “राम-मंदिर’ बना दिये गये । परंतु अन्य मुगल शासकों द्वारा कई हजारों आस्थावान भक्तों की जान लेकर “राम मंदिर पर कब्जा कर लिये गये। सैंकड़ों सालो तक “राम जन्म भूमि का संघर्ष चलता रहा।

कमोबेश “राम जन्म भूमि हमेशा विवादों का केंद्र-बिंदु बने रहने के कारण सन् 1859 में अंग्रेजी शासकों ने विवादित निर्माण में विभाजित दिवार बना दिये गये। अंग्रेजी शासक द्वारा विवादित निर्माण के भीतरी हिस्से एक समूदाय को एवं बाहरी हिस्से को समूदाय को प्रार्थना करने के लिए अनुमति दिये गये। इस तरह के असहमति कारक विभाजन का विरोध और हिंसा की बढ़ती घटनाओं के कारण स्वतंत्र भारत सरकार द्वारा विवादित निर्माण में ताला लगा दिया गया। सन् 1949 में जानकार लोगों का कहना है कि- कुछ लोगों द्वारा राम लल्ला की मुर्ती को रातो-रात लाकर रखने से, दूसरे वर्गों के विरोध के चलते दोनों वर्गों द्वारा अदालत में मुकदमा दर्ज कर दिये गये। देश में बहुसंख्यक वर्गो की हितों की रक्षा करने हेतू सन् 1984 में “कथित राजनैतिक दल” का गठन हुआ। जिसका मकसद सिर्फ भोली-भाली जनता की धार्मिक भावनाओं को सामने रखकर, सत्ता-प्राप्ति हेतु “राम जन्म भूमि’ के नाम पर बहुसंख्यक वर्गो का विश्वास हासिल करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहे । “कथित राजनैतिक दल” का पोषण केंद्र विश्व हिंदू परिषद एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेतृत्व में “राम जन्म भूमि” को मुक्त कराने एवं राम मंदिर निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया गया। इस समिति के अध्यक्ष लाल कृष्ण अडवानी के नेतृत्व में पूरे देश में आंदोलन की शुरूवात की गई। जिसके चलते स्वयं अडवानी जी द्वारा “राम – स्थ-यात्रा” निकाली गई । इस दौरान 31 जनवरी 1986 में फैजाबाद के वकील उमेश चंद्र ने “राम मंदिर के ताला खुलवाने की अपील को मंजूर करते हुए, अदालत द्वारा ताला खुलवाने का आदेश जारी किया गया। उस वक्त देश का प्रधानमंत्री राजीव गांधी को दूसरे विरोधी वर्गो का भारी असंतोष एवं गुस्से का सामना करना पड़ा था। दिनांक 30 अक्टूबर 1990 में उ.प्र. सूबे के मुखिया द्वारा “बाबरी मस्जिद” स्थल पर प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिये गये थे। किंतु राम के प्रति आस्था रखने वाले युवाओं द्वारा जबरदस्ती प्रवेश के दौरान गोली चलाने के आदेश से भीड़ में भगदड़ मच गई। और इस घटना में कई सैकड़ो लोग घायल हुये थे। उस वक्त देश के प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह के तानाशाही रवैये के कारण उन्हे राम – भक्तों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। परिणाम स्वरूप वी.पी. सिंह को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था।

इसके बाद भारतीय राजनीति में “कथित राजनैतिक दल द्वारा “राम मंदिर” को चुनावी मुद्दे बनाकर देश भर में खूब प्रचार-प्रसार करते हुए नारे लगाये गये हैं। कि- ” राम लल्ला आयेंगे, मंदिर हम बनायेगे” । देश भर में कई महिनों तक “राम-मंदिर’ का मुद्दा को गरमाया रखा गया। एक बार पुनः राम भक्तो का प्रवेश “बाबरी मस्जिद” स्थल में सफल हो गया और उत्मादी भीड़ द्वारा दिनांक 06 दिसंबर 1992 को पुरानी “बाबरी मस्जिद” को जमीदरोंज कर दिया गया। परिणाम स्वरूप पूरे देश में उत्तेजना एवं धार्मिक भावनाये भड़क उठी और देखते ही देखते हिंसा व तनाव का माहौल कई दिनों तक बना रहा। उस देश के प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव को अपनी ही पार्टी से विरोध का सामना करना पड़ा था। पार्टी के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह ने प्रधानमंत्री को देश से माफी की मांग तक कर दी गई। संसद में “कथित राजनैतिक दल के प्रतिपक्ष नेता अटल बिहारी बाजपई को संसद में खेद प्रकट करना पड़ा था। उसके उपरांत केंद्र सरकार द्वारा कड़े कदम उठाते हुए अशोक सिंघल, लाल कृष्ण अड़वानी, कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी एवं उमा भारती के अलावा 13 अन्यो के खिलाफ अपराधिक मुकदमा दायर किया गया। इसके अतिरिक्त म.प्र. उ.प्र. राजस्थान एवं हिमांचल प्रदेश की सरकार को भंग कर दिया गया।

सन् 2010 में इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने विवादित भूमि को “राम जन्म भूमि” घोषित किया गया। इस फैसले से राम- म भक्तों में अपार खुशी की लहर दौड़ पड़ी। किंतु दूसरा पक्ष इस निर्णय से असंतुष्ट होकर निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दायर कर दिया गया। इस मुद्दे को लेकर “कथित राजनैतिक दल” द्वारा चुनावों मे एजेंडा बनाकर नारा दिया गया है कि- “राम लल्ला को लायेगें, मंदिर जरूर बनायेगे”। इस बात पर देश की भोली-भाली जनता प्रभावित जरूर हुए और देश में राजनैतिक घमासान मचा रहा। अंततः “कथित राजनैतिक दल” द्वारा कुछ राज्यों में सत्ता – प्राप्त करने में सफल हुए। और सत्ता में बने रहने के लिए “राम मंदिर’ निर्माण हेतू जनता से एक ईंट की याचना को उछालते हुए नारा दिया गया है कि- “हम मंदिर जरूर बनायेंगे मगर तारीख नही बतायेंगे”। इस तरह के उग्र नारे का परिणाम “गुजरात दंगे” को देश ने देखा है। पूरे देश में हिसात्मक एवं अशांती का वातावरण कई सालों तक बना रहा। उस वक्त देश में “कथित राजनैतिक दाल की सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को देश में बिगड़ती कानून व्यवस्था में कसावट लाने के लिए बहुत ही दबाव एंव विरोध का सामना करना पड़ा था।

अंततः 1 नवंबर 2019 को “राम मंदिर-बाबरी मस्जिद” का सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला दिया गया है कि- 2.77 एकड़ की विवादित जमीन जो कि “राम लल्ला” की जन्म भूमि है। अतः इस जमीन को ट्रस्ट को सौंपी जाये। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगई की अध्यक्षता में पांच सदस्यों की पीठ विद्वान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगई जस्टिस डी.वाई.चंद्रचुड़, जस्टिस शरद अरविंद बोवड़े, जस्टिस अशोक भूषण एवं जस्टिस एस. अब्दुल नजीर द्वारा सुनाया गया है। फैसले के अनुसार दूसरे पक्ष को “मस्जिद–निर्माण” हेतू अयोध्या में ही 50 एकड़ की जमीन उपलब्ध कराने हेतू आदेश दिया गया है। अंतिम तौर पर इस तरह सुखद फैसले से देश की जनता राहत की सास ली। देश के प्रधानमंत्री द्वारा देशवासियों को “राम मंदिर’ के पक्ष में लिये गई फैसले पर खुशी का इजहार करते हुए बधाई भी दिये।

“कथित राजनैतिक दल” द्वारा नये “राम-मंदिर’ निर्माण के लिए जनता से सहयोग राशी की मांग की गई। और देखते ही देखते कुछ दिनों के भीतर जनता ने खुशी-खुशी में दोनों हाथों से सोना-चांदी एवं रकम दान में दियें। इस तरह “राम मंदिर’ निर्माण के लिए अपार धन राशि इकट्ठे हो गये। और फिर शुरू हुई लाखों करोड़ों रूपयों का व्यापार की रूपरेखा । विवादित स्थल से 500 मीटर दूर भव्य मंदिर निर्माण के लिए जमीन की खरीदी की गई। जो कि निर्धारित दर से अधिक रकम देकर खरीदी के साथ रजिस्ट्री की गई। इसके उपरांत प्रधानमंत्री द्वारा 05 अगस्त 2020 को “राम मंदिर’ के निर्माण हेतू भूमि – पूजन का कार्य समपन्न किये गये। अगले दो साल के अंतराल में 22 जनवरी 2024 को “मर्यादा पुरूषोत्तम राम – मंदिर” का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा सभी धार्मिक मर्यादाओं को दरकिनार करते हुए अधूरे “राम – मंदिर” का उद्घाटन किया गया । इस तरह देश के प्रधानमंत्री द्वारा, अधार्मिक नीति अपनाते हुए “अधूरे राम मंदिर का उद्घाटन एवं पूजन कार्य से राम के प्रति आस्था रखने वाले भक्त आहत जरूर हुए हैं। ” कथित राजनैतिक दल” सत्ता प्राप्ति के लिए “राम रथ यात्रा” तो जरूर किये है। और एक दशक तक सत्ता-सुख भोगने के उपरांत, इन्हे भी “राम-वन-यात्रा” पर देश की जनता देखना चाहती है।

टीप – यह लेख तपन चक्रवर्ती का निजी विचार है। cgbatchit.com द्वारा संपादित नहीं की गई है।

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