रायपुर। छत्तीसगढ़ की महिला पत्रकार तृप्ति सोनी ने X में मुर्गी लूट का वीडियो शेयर किया है, जिसमें उन्होंने आगे लिखा है, एप्पल की बनी मुर्गी रहती, तो आप क्या करते? छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में पोल्ट्री फॉर्म से दुकानों तक मुर्गियां पहुंचाने वाली एक गाड़ी पलट गई, और ड्राइवर उसके भीतर जख्मी फंसा रहा। आसपास के लोग गाड़ी पर टूट पड़े, और मुर्गियां निकाल-निकालकर अपने घर भागते रहे। हो सकता है कि उनके पास फोन करने का समय रहता, तो अपने घर फोन करके खबर भी कर देते कि कड़ाही चढ़ाकर रखें, वे जंग जीतकर लूट का माल लेकर आ रहे हैं। यह नजारा देखना भी भयानक था कि किसी हादसे की शिकार गाड़ी को वे सारे लोग लूट रहे हैं जो कि आमतौर पर मुजरिम नहीं हैं, लेकिन पहला मौका मिलते ही जुर्म करने पर ऊतारू हो गए। इससे यही लगता है कि वे सामाजिक और कानूनी दबाव में ही जुर्म से परे बने हुए हैं, वरना उनकी चमड़ी के ठीक नीचे मुजरिम इंतजार करते हुए एक पैर पर खड़ा है। आसपास पुलिस नहीं थी, ड्राइवर विरोध करने की हालत में नहीं था, और लोगों को यह जश्न का मौका लग रहा था कि लूटो, पकाओ, और खाओ।
हो सकता है कि अधिकतर लोगों को यह भी मलाल रहा होगा कि आसपास कोई दारू की गाड़ी नहीं पलटी है, वरना दावत शाही हो गई रहती। यह पहला मौका नहीं है। इसके पहले भी देशभर में जगह-जगह से ऐसे वीडियो सामने आए हैं जब पेट्रोल या ऑइल टैंकर पलट गए, और लोग ड्राइवर-कंडक्टर को बचाने के बजाए बहते हुए पेट्रोल-डीजल को बाल्टियों में भरने लगे। एक घटना तो ऐसी भी हुई थी कि कैमिकल ले जा रहा एक टैंकर पलट गया था, और उसके खतरे को समझे बिना लोग बाल्टियां भरने लगे थे, और फिर उसी कैमिकल से झुलस भी गए थे। जब लोग घरों में ताले लगाते हैं तो वे मुजरिमों के लिए नहीं रहते। मुजरिम तो तालों को खोल भी सकते हैं, और तोड़ भी सकते हैं। वे ताले आमतौर पर शरीफ समझे जाने वाले, और जुर्म का पहला आसान मौका मिलने तक शरीफ रहने वाले लोगों के लिए रहते हैं कि वैसे लोग राह चलते हुए बिन ताले की जगहों को खोलकर सामान चुरा न लें। मैं छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े निजी कॉलेज, रायपुर के दुर्गा कॉलेज के सबसे लंबे समय तक, और सबसे मशहूर प्राचार्य रणवीर सिंह शास्त्री का एक पुराना इंटरव्यू पढ़ रही थी जिसमें उन्होंने उत्तर भारत के अपने गांव का जिक्र किया था कि मेन रोड से उतरकर अंधेरा होने के पहले-पहले गांव पहुंच जाना पड़ता है, वरना लुट जाने का खतरा रहता है। उनका कहना था कि यह भी जरूरी नहीं रहता कि लूटने वाले कोई लुटेरे ही हों, राह चलते आम लोग भी यह देखकर कि कोई बाहरी व्यक्ति दिख रहा है, उसे लूट सकते हैं। हम सबके भीतर एक मुजरिम बैठा हुआ है, और हम अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, और पारिवारिक सीख के चलते हुए एक दिखावटी काबू में बने रहते हैं। तब तक, जब तक कि सीसीटीवी से परे का कोई मौका न मिल जाए। ऐसा सुरक्षित मौका मिला, और हमारे भीतर का मुजरिम कूदकर बाहर निकलता है, और अपनी दबी-कुचली हसरत, कुंठित भावनाओं को पूरा करने में लग जाता है। ऐसी कुंठित भावनाओं में वर्जित संबंधों को पूरा करने से लेकर, आसपास के किसी बच्चे पर हाथ फेर देने, किसी का सामान चुरा लेने, बंद बाथरूम के गंदा करने, और वैसा ही छोड़ देने जैसी कई हसरतें रहती हैं। अब जरा उस जख्मी ड्राइवर की नजरों से बेमेतरा के इस नजारे को देखें। दिनदहाड़े, सूरज की रौशनी में, एक मेन रोड पर गाड़ी पलटी हुई खड़ी है, ड्राइवर भीतर जख्मी है, और दर्जनों लोग मुर्गियों की लूटपाट में लगे हैं। कल ही केंद्र सरकार ने यह घोषणा की है कि राह चलते किसी हादसे के जख्मी को अस्पताल पहुंचाने वाले लोगों को 25 हजार रूपए ईनाम दिया जाएगा। एक पल को तो यह घोषणा अपने आपमें शर्मनाक लगती है कि क्या इंसानियत का पूरी तरह दीवाला ही निकल गया है कि जख्मी को अस्पताल पहुंचाने ईनाम रखा जा रहा है। फिर बेमेतरा की इसी मुर्गी-वैन को देखें तो लगता है कि यह ईनाम एकदम सही ही नहीं, एकदम जरूरी भी था क्योंकि मुर्गी कितनी भी लूट लें, किसी एक व्यक्ति को 25 हजार से अधिक की तो नहीं मिल पाएगी। ऐसे में केंद्र सरकार की यह घोषणा इतने सही समय पर आई है, लेकिन एक दिन लेट आई है। कल सुबह ही अगर अखबारों में यह छप गई रहती, और बेमेतरा के मुर्गी-लुटेरे इसे पढ़ चुके रहते, तो हो सकता था कि आधे लोग मुर्गी लूटने में लगे रहते, और आधे लोग जख्मी ड्राइवर को अस्पताल पहुंचाकर 25 हजार नगद भी हासिल किए रहते। पेपर न पढ़ने का यह नुकसान रहता है, वरना चिकन पार्टी के साथ-साथ 25 हजार रूपए में सबके लिए दावत में और भी बहुत कुछ आ सकता था।
अकेले बेमेतरा के लोगों की खिल्ली उड़ाना मेरा मकसद नहीं है। मैं तो आईने में देखते हुए अपने-आपसे यह सवाल कर रही हूं कि मुर्गी पर तो मेरी नीयत नहीं आएगी, उतना खरीदने की तो ताकत है, लेकिन बहुत महंगी ऐसी कौन सी चीज हो सकती है, जिसकी गाड़ी पलट जाने पर, आसपास कोई सीसीटीवी कैमरा न होने पर, उसे लूटने की मेरी भी नीयत हो जाए? मैं तो अपने बारे में सोच रही हूं, और लोग चाहें तो एक दिमागी कसरत की तरह यह नैतिक चुनौती अपने सामने रख सकते हैं कि किस सामान पर उनकी भी नीयत आ सकती है? हो सकता है कुछ लोगों के लिए एक मुर्गी उनकी पहुंच के बाहर की हो, लेकिन यह भी हो सकता है कि और बहुत से लोगों के लिए एक आई-फोन ईमानदारी छोड़ने की वजह बन जाए।
नीचे फोटो में पत्रकार तृप्ति सोनी